Aravali Parvat Mala का संरक्षण खतरे में है? क्या सुप्रीम कोर्ट का निर्णय होगा खतरनाक ?

अरावली पर्वतमाला ( Arawali Hills) – इस समय अरावली पर्वतमाला ( Aravali Parvat Mala) काफी चर्चा में है, चर्चा में रहते का कारण सरकार और सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या है जिसमें उन्होंने अरावली पर्वतमाला की व्याख्या की है । सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस प्रस्ताव पर मोहर लगा दी है जिसमें कहां गया है कि जो पर्वत 100 मीटर से ऊपर है उन्हें ही अरावली पर्वत का हिस्सा माना जाएगा । अब लोगों का मानना है कि सरकार 100 मीटर से नीचे के पर्वतों को खदान के लिए उपयोग करने वाली है। जिसके कारण लोग इसे पर्यावरण के लिहाज से खतरनाक मान रहे हैं । हम आपको इस लेख में अरावली पर्वतमाला की शुरुआत से लेकर और अब तक जो विवाद चल रहा है उसकी सारी जानकारी इस लेख में देने वाले है ।

हम आपको इस लेख में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो अरावली पर्वतमाला की परिभाषा प्रस्तुत की गई है उसको भी आपको दिखाने वाले हैं । आखिर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा है और केंद्र सरकार ने अपने आदेश में क्या कहा है वह आपको इस लेख मैं सबसे नीचे मिलने वाला है, और विवाद हो क्यों रहा है उसकी भी जानकारी आपको इस लेख में मिलने वाली है ।

अरावली पर्वतमाला का ऐतिहासिक महत्व –

शोधकर्ताओं के अनुसार अरावली पर्वतमाला का निर्माण करीब 250 से 350 साल पहले शुरू हुआ था । अरावली पर्वतमाला में सबसे ऊंची छोटी गुरु शिखर है जिसकी ऊंचाई 1722 मीटर है । अरावली पर्वतमाला की श्रृंखला उत्तर पश्चिमी भारत में स्थित है यह दक्षिण पश्चिम दिशा में गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर दिल्ली तक फैली हुई है । राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली ,गुजरात तक यह श्रृंखला करीब 670 किलोमीटर लंबी है ।

अरावली पर्वतमाला थार रेगिस्तान को फैलने से रोकने में अपनी हम महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और साथ ही यह भारत की जलवायु और पर्यावरण को भी प्रभावित करती है । वैज्ञानिक अरावली पर्वतमाला का निर्माण प्रोटरोजोइक युग में हुआ मानते हैं ।

भारत के इतिहास में अरावली पर्वतमाला का स्वर्णिम इतिहास रहा है,अरावली पर्वतमाला ने मध्यकालीन इतिहास में महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं को मुगलों के खिलाफ छापामार युद्ध के लिए सुरक्षित स्थान भी दिया । चित्तौड़गढ़ और कुंभलगढ़ ( Kumbhalgarh ) जैसे प्रसिद्ध किले इसी अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है । अरावली पर्वतमाला ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है इस पर कई गढ़, किले, दुर्ग, मंदिर और नगर बसे हुए हैं जो अरावली की गाथा गाते हैं ।

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उत्तर भारत का फेफड़ा है Aravali Parvat Mala –

अरावली पर्वतमाला को उत्तर भारत का ‘फेफड़ा’ माना जाता है और अरावली पर्वतमाला चंबल, लूणी,और साबरमती जैसी नदियों के लिए जल स्रोत का काम करती है। अरावली दिल्ली-NCR के लिए ग्रीन लंग्स ( Green Lungs ) यानी इंसानी फेफड़ों की तरह काम करता है । पर्यावरण कार्यकर्ता ( Environment Activist ) नीलम आहूजा ( Neelam Ahuja ) जो पिछले कई वर्षों से अरावली पर्वतमाला के लिए संघर्ष कर रही हैं, इस मामले पर उनका कहना है कि अगर अरावली हट गई, तो उत्तर-पश्चिम भारत रेगिस्तान बन जाएगा और इसका सीधा असर भोजन, पानी, पर्यावरण और लाखों लोगों की ज़िंदगी पर पड़ेगा ।

अरावली पर्वतमाला भूजल रिचार्ज को बढ़ाने और पारिस्थितिकी को मजबूत करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इसलिए इसे उत्तर भारत का फेफड़ा कहा जाता है । अरावली पर्वतमाला का संरक्षण उत्तर भारत के पर्यावरण और भविष्य के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है ।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व मरुस्थलीकरण दिवस की घोषणा –

मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिए विश्व मरुस्थलीकरण दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रत्येक वर्ष 17 जून को मनाया जाता है। विश्व मरुस्थलीकरण दिवस मनाए जाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र द्वारा 30 जनवरी 1995 को प्रस्ताव ए/आरईएस/49/115 द्वारा की गई थी । विश्व मरुस्थलीकरण दिवस का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई करना था, ताकि वर्तमान की जरूरतों का समर्थन कर भावी पीढ़ियां हेतु जलवायु और पर्यावरण को बचाया जा सकें ।

अरावली पर्वतमाला के साथ छेड़छाड़ करना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना है । अरावली पर्वतमाला का क्षरण भारत के एक बड़े भूभाग को प्रभावित कर सकता है और इसका नुकसान भारत के लोगों को उठाना पड़ सकता है । विश्व मरुस्थलीकरण दिवस को केवल एक दिवस के रूप में मानना सही नहीं है बल्कि इसे सही तरीके से लागू करने की जरूरत है ।

जमीनी जल स्तर को बनाए रखना

अरावली पर्वतमाला राजस्थान और हरियाणा के लिए एक बड़े वाटरशेड का काम करती है अरावली की पहाड़ियां वर्षा के जल को सोख कर भूजल स्तर बनाए रखती है । अगर अरावली पर्वतमाला का क्षरण होता है तो भूजल स्तर में कमी देखने को मिलेगी इससे आसपास के इलाकों में पानी का संकट बना रहेगा।

यह संभव है कि अभी पानी की समस्या देखने को नहीं मिले लेकिन भविष्य में जल संकट उत्पन्न नहीं होगा इसके बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है यह पूरी संभावना है कि भविष्य में या आने वाली पीढियां के लिए एक बड़ा जल संकट उत्पन्न करेगा ।

अरावली पर्वतमाला पर जैव विविधता –

अरावली पर्वतमाला चार राज्यों ( राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, दिल्ली ) के 29 जिलों में फैली यह रेंज 5 करोड़ लोगों की जलवायु, पानी और जैव विविधता के लिए जरूरी है, मध्य अरावली पर्वतमाला पर 31 प्रकार के बड़े-छोटे स्तनधारी जीव / जानवर पाए जाते हैं,

हरियाणा और दिल्ली के अरावली पर्वतमाला पर 15 प्रकार के स्तनधारी जानवर / जीव पाएं जाते है । अगर 100 मीटर से नीची पहाड़ियां कट गईं तो जानवरों का आवास नष्ट हो जाएगा, वे शहरों की तरफ आएंगे, जिससे जानवरों और मनुष्यों के बीच संघर्ष बढ़ेगा।

अरावली पर 300 से ज्यादा पक्षी प्रजातियां पाई जाती है और कई प्रकार की सरीसृप प्रजातियां पाई जाती है । अगर अरावली की पहाड़ियां कटती रहीं तो ये जानवर / पक्षी / जीव विलुप्त हो सकते हैं या फिर यह गांवों या शहरों की ओर पलायन कर सकते है ।

अरावली पर्वतमाला पर कई प्रकार की औषधियां ( जड़ी बूटियां ) पाई जाती है । अरावली बायो-डायवर्सिटी पार्क में 240 से ज्यादा औषधीय पौधे पाएं जाते है । अगर अरावली में खनन होता है तो जड़ी बूटियां और औषधीय के समाप्त होने की संभावना भी बढ़ सकती है ।

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अरावली के वर्तमान चर्चा में रहने के कारण

1. कानूनी 2. राजनीतिक

1.कानूनी – अरावली पर्वतमाला के चर्चा में रहने का कारण सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार है । सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की सिफारिशों के बाद अरावली की जिस परिभाषा को स्वीकार किया है उसके अनुसार जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंचे हिस्से को अरावली की पहाड़ी माना जाएगा । सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला 20 नवंबर 2025 को आया था जिसने देश भर में एक चिंता की लहर दौड़ा दी । सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ऐसी पहाड़ियां जो 500 मीटर के दायरे के अंदर हो और उनकी बीच जमीन भी मौजूद हो तब उन्हें अरावली पर्वतमाला ( Aravalli Hills) का हिस्सा माना जाएगा ।

इस सरकारी आदेश के आधार पर राजस्थान में चिन्हित 12,081 अरावली पहाड़ियों में से केवल 1,048 (करीब 8.7%) ही इस नए मानक पर खरी उतरती हैं । यानी 90% से अधिक अरावली पहाड़ियों पर खतरे का संकेत मंडरा रहा है ।

हालांकि केंद्र सरकार की तरफ से केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ( Bhupendra Yadav ) दावा कर रहे है कि अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह की कोई छूट नहीं दी जाएगी । नई परिभाषा का उद्देश्य सिर्फ नियमों को मजबूत करना है।

2.राजनीतिक –

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अरावली पर्वतमाला पर बोलें –

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( Ashok Gehlot) ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि 2003 में एक विशेषज्ञ समिति ने आजीविका के दृष्टिकोण से 100 मीटर की परिभाषा की सिफारिश की थी, जिसे राज्य सरकार ने 16 फरवरी 2010 को हलफनामे के जरिए सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) के सामने रखा था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 19 फरवरी 2010 को इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया ।

निर्दलीय विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने अरावली पर्वतमाला पर क्या ?

निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ( Ravindra Singh Bhati) अरावली पर्वतमाला पर सरकार द्वारा अरावली की परिभाषा पर कहा कि यह खनन माफियाओं के लिए रेड कारपेट बिछाने जैसा है । केंद्र और राज्य सरकार से मजबूत पैरवी की मांग की है, भाटी ने कहा है कि आने वाली पीढ़ी के लिए और मानव जाति के लिए अरावली को बचाना बहुत जरूरी है । Ravindra Singh Bhati ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने मजबूती से पैरवी नहीं की तो आमजन और आने वाली पीढ़ियां सड़कों पर उतरने को मजबूर हो जाएंगी ।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं ( Environment Activist ) और सामाजिक कार्यकर्ताओं ( Social Activist) को डर है कि बदली हुई परिभाषा देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला अरावली पर्वतमाला के इकोलॉजिकल संतुलन को बिगाड़ सकती है जिससे देश के कई हिस्सों में असंतुलन पैदा हो सकता है और मानव जीवन/ जानवर / वनस्पति / पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा पैदा हो सकता है ।

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